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शनिवार, 17 सितंबर 2011

धार्मिक आन्दोलन बिहार  :- 




भारत में आर्यों के आगमन के साथ विशिष्ट धर्म वैदिक धर्म भी अपने साथ लाये थे । बिहार की भूमि पर ब्राह्मण धर्म ने अपना प्रभाव एक निश्‍चित एवं समग्र रूप में विकसित किया था । धर्म और राजतन्त्र एक-दूसरे पर निर्भर थे फलतः दोनों के बीच संघर्ष शुरू हुआ ।
ब्राह्मण धर्म के विरोध का स्वरूप ६वीं सदी ई. पू. में तीव्र हुआ था । नये धर्म की उत्पत्ति होने लगी । इस समय लगभग ६२ धार्मिक सम्प्रदायों का उदय हुआ जिसमें जैन धर्म और बौद्ध धर्म बहुत महत्वपूर्ण हैं ।
जैन धर्म
६ वीं शताब्दी ई. पू. में बिहार की भूमि पर धार्मिक क्रान्ति का सूत्रपात हो रहा था । धार्मिक क्रान्ति में जैन धर्म एक प्रमुख धर्म था । परम्परा के अनुसार धर्म में कुल २४ तीर्थंकर हुए जिनमें ऋषभनाथ पहले थे, जबकि पार्श्‍वनाथ २३ वें तथा महावीर २४ वें तीर्थंकर हुए ।
इतिहासकारों के अनुसार जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक महावीर को मानते हैं ।
महावीर का जीवन परिचय

महावीर का जन्म ५४० ई. पू. में वैशाली के निकट कुण्डग्राम में ज्ञातृक क्षत्रिय कुल में हुआ था । इनकी माता त्रिशाला वज्जिसंघ के राजा चेतक की बहन थी । यह कश्यप गोत्र में पड़ते थे । इनका विवाह यशोदा नामक कन्या से हुआ जिनसे पुत्री प्रियदर्शना उत्पन्‍न हुई । ३० वर्ष की अवस्था में उन्होंने गृह त्याग दिया था । यह कार्य उन्होंने अपने बड़े भाई नन्दिवर्धन की आज्ञा के अनुसार किया ।
१२ वर्षों की कठिन व घोर तपस्या के पश्‍चात्‌ जम्भिग्राम के समीप ऋजु पालिका नदी के तट पर उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई । कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति के बाद उन्होंने सुख-दुःख पर विजय पा ली थी । ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर अपने विचारों के प्रचार में लग गये । इस दौरान उन्होंने वैशाली, मगध, राजगृह, मिथिला, चम्पा, श्रावस्ती, अंग, कौशल, विदर्भ आदि क्षेत्रों में धर्म का प्रचार-प्रसार किया ।
जैन धर्म और बिहार

महावीर द्वारा अवतरण धर्म का प्रचार करते हुए ७२ वर्ष की आयु में ४६८ ई. पू. राजगृह के निकट पावापुरी में निर्वाण की प्राप्ति हुई ।
जैन धर्म का मानना है कि संसार वास्तविक और शाश्‍वत है परन्तु इसके निर्माणकर्ता के रूप में ईश्‍वर को स्वीकार नहीं किया जाता है । आत्मा का अस्तित्व होता है एवं कर्मों के आवरण के कारण ही बार-बार जन्म ग्रहण करना पड़ता है ।
* चन्द्रगुप्त मौर्य की शासनावधि में मगध में अकाल पड़ा जिससे भद्रबाहु के नेतृत्व में कुछ जैनी चन्द्रगुप्त मौर्य सहित दक्षिण भारत चले गये और उनके शिष्य बन गये । जैन धर्म के समर्थक राजाओं में उदयन, बिम्बिसार, अजातशत्रु, नन्द वंश के राजा बिन्दुसार, खारवेल आदि थे । मथुरा एवं उज्जैन इस धर्म का प्रमुख केन्द्र था ।
* जैन धर्म में स्यादवाद को सप्तभंगी का सिद्धान्त कहा जाता है । सैद्धान्तिक रूप में जैन धर्म ने जाति प्रथा का विरोध किया ।
* मौर्य काल में जैन धर्म दिगम्बर और श्‍वेताम्बर धर्म सम्प्रदाय में विभक्‍त हो गया । जैन धर्म के अनुसार त्रिरत्‍न हैं- सम्यक्‌ ज्ञान, सम्यक्‌ दर्शन एवं सम्यक्‌ आचरण ।
* स्यादवाद निग्रंथ पंच महाव्रत जैन धर्म से सम्बन्धित है ।
* देव-देवाली जैनियों का पर्व एवं कल्पसूत्र तीर्थंकर जीवन वृत है ।
* जैन साहित्य में आगम सर्वोपरि है । जैन धर्म की परम्पराओं के अनुसार जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी का प्रतीक चिन्ह सिंह है । ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर स्वामी ने पावापुरी में जैन संघ की स्थापना की थी । गोशाल महावीर के प्रथम सहयोगी थे ।
* प्रथम जैन सभा (३९०) चौथी शताब्दी ई. पू. में पाटलिपुत्र में स्थूलवाहू के नेतृत्व में हुई थी । इस संगीति में जैन धर्म दिगम्बर एवं श्‍वेताम्बर दो सम्प्रदायों में विभक्‍त हो गया था ।
* महवीर ने अपने धर्म के प्रचार में प्राकृत भाषा का इस्तेमाल किया । जैन संघ की स्थापना के बाद उसके प्रचार के लिए गण (समूह) के लिए गणधर नियुक्‍त किया था । जैन धर्मानुयायी चार वर्ग में बँटे थे-भिक्षु, भिक्षुणी, श्रावक, श्राविका ।
* जैन धर्म के प्रचार की भाषा प्राकृत थी पर धर्म ग्रन्थों की रचना अर्द्धमागधी भाषा में लिखी गई है ।
* कुलप्रमुख की रचना संस्कृत भाषा में हुई है । जैन धर्मावलम्बियों के लिए आरा (बिहार) बहुत महत्वपूर्ण है । यहाँ करीब ४५ जैन मन्दिर हैं । ह्वेनसांग के अनुसार यहाँ का जैन सिद्धान्त भवन भारत विख्यात था ।
* यहीं पर ब्रह्मचारिणी पण्डित चंदावाई ने १९२१ ई. में श्री जैन वाला विश्राम की स्थापना की । इस प्रकार जैन धर्म ने बिहार के सांस्कृतिक, सामाजिक एवं शैक्षिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है ।
बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म के संस्थापक एवं प्रवर्तक गौतम बुद्ध थे । गौतम बुद्ध का जन्म ५६३ ई. पू. में नेपाल की तराई में स्थित कपिलवस्तु राज्य के लुम्बिनी (नेपाल) में ग्राम हुआ था ।
इनके पिता का नाम शुद्धोधन था जो कपिलवस्तु के राजा थे एवं माता का नाम महामाया था । गौतम के बचपन नाम सिद्धार्थ था । सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही इनकी माता का देहान्त हो गया और इनका लालन-पालन इनकी मौसी एवं विमाता गौतमी ने किया । १६ वर्ष की अवस्था में इनका विवाह यशोधरा नामक कन्या से हुआ, जिससे राहुल नामक एक पुत्र का जन्म हुआ ।
जन्म के उपरान्त ब्राह्मणों ने भविष्यवाणी की थी कि गौतम या तो महाप्रतापी राजा होंगे या फिर महान सन्यासी । सारी राजकीय सुविधा एवं पारिवारिक सुखद मिलने के बाद भी वे बन्धन में नहीं बँध सके । २९ वर्ष की अवस्था में उन्होंने घर छोड़ दिया, जिसे बौद्ध परम्परा में महभिनिष्क्रमण कहा जाता है । गौतम बुद्ध क्षत्रिय कुल एवं शाक्य वंश से जुड़े हुए थे । गृह त्याग के पश्‍चात्‌ उन्होंने आलार कलमा (सांख्य दार्शनिक) एवं रूद्रक राय पुत्र के सम्पर्क में आकर दीक्षा ली । उनसे ही योग एवं ध्यान की दीक्षा प्राप्त की । ज्ञान प्राप्ति हेतु वे गया चले गये जहाँ निरंजना नदी के किनारे पीपल के वृक्ष के नीचे ४९ दिनों तक कठोर तपस्या की । शूद्र महिला सुजाता द्वारा खीर खाने के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई । बौद्ध की इस घटना को सम्बोधि कहा गया है । पीपल के वृक्ष को बोधिवृक्ष, इस स्थान को बोधगया तथा गौतम को बुद्ध कहा गया । महात्मा बुद्ध ने अपना पहला धर्मोपदेश सारनाथ में दिया था । जहाँ पाँच शिष्य के बीच उपदेश दिया । ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध घूम-घूमकर धर्म उपदेश देते रहे । महात्मा बुद्ध की शिक्षाएँ त्रिपिटक में संग्रहीत हैं । विनयपिटक, संघ सम्बन्धी नियम, दैनिक आचार-विचार व विधि निषेधों का संग्रह है ।
सुतपिटक बौद्ध धर्म के सिद्धान्त व उपदेशों का संग्रह है । अभिधम्भ पिटक (प्रश्‍नोत्तर) दार्शनिक सिद्धान्तों का वर्णन है । बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य हैं- (१) दुःख, (२) दुःख समुदय, (३) दुःख निरोध, (४) दुःख निरोध गामिनी । महात्मा बुद्ध ने दुःख से विरक्‍ति के लिए अष्टांगिक मार्ग का अनुसरण किया । महात्मा बुद्ध की मृत्यु (निर्माण) ४८३ ई. पू. ८० वर्ष की आयु में गोरखपुर के निकट कुशीनगर (उ. प्र.) में हुई ।
बौद्ध धर्म और बिहार

भगवान बुद्ध के व्यक्‍तिगत प्रयासों से बौद्ध धर्म मगध, श्रावस्ती एवं आस-पास के क्षेत्रों में काफी लोकप्रिय बन गया । धर्म प्रचार के लिए महात्मा बुद्ध ने एक संघ की स्थापना की । प्रत्येक स्थान का भिक्षु संघ अपने आप में स्वतन्त्र होता था ।
भिक्षुओं के लिए बौद्ध धर्म एवं संघ में आस्था रखना अनिवार्य था । फलतः बिहार राज्य में तीन प्रमुख बौद्ध संगीतियाँ सम्पन्‍न हुई हैं, जो निम्न हैं-
प्रथम बौद्ध संगीति-
समय- ४८३ ई. पू. में समपन्‍न हुई थी ।
स्थान- सप्तपर्णी गुफा (राजगृह में) ।
अध्यक्षता- महाकश्यप ने की थी ।
तत्कालीन शासक- हर्यक वंश के प्रतापी राजा अजातशत्रु के शासनकाल में हुआ ।
इस संगीति में बुद्ध की शिक्षाओं को दो पिटकों- सुतपिटक एवं विनयपिटक में विभाजित किया गया । इनमें बुद्ध की शिक्षा का संकलन किया गया । बुद्ध के दो शिष्य आनन्द ने सुतपिटक (धर्म के सिद्धान्त) एवं उपालि ने विनयपिटक (आचार के नियम) संकलित किये ।
द्वितीत बौद्ध संगीति-
समय- यह बौद्ध संगीति ३८३ ई. पू. में सम्पन्‍न हुई थी ।
स्थान- वैशाली में ।
अध्यक्षता- सबबाकामी (स्थविर) ने की थी ।
तत्कालीन शासक- कालाशोक जो शिशुनाग वंश का शासक था । इस बौद्ध संगीति में बौद्ध संघ में विभेद उत्पन्‍न हो गया था ।
परम्परागत नियमों से बँधे स्थविर तथा नये नियमों को समाविष्ट होने में पक्षधर महासंधिक में बँट गया था । ये दो भागों में विभाजित है-
(।) स्थविर अथवा थेरवादी ।
(॥) महासंधिक अथवा सर्वास्तिवादी (यही दोनों सम्प्रदायों के बाद क्रमशः हीनयान और महायान की उत्पत्ति हुई।)
तृतीय बौद्ध संगीति
समय- यह बौद्ध संगीति २४७ ई. पू. में सम्पन्‍न हुई थी ।
स्थान- पाटलिपुत्र में ।
अध्यक्षता- मोगलिपुत्र तिरन्त ने की थी ।
तत्कालीन शासक- तृतीय बौद्ध संगीति मौर्य वंश के प्रतापी शासक अशोक ने सम्पन्‍न की । इस बौद्ध संगीति का प्रमुख उद्देश्य था- पिटकों का आध्यात्मिक एवं दार्शनिक तत्वों का निर्धारण करना ।
प्रमुख कार्य- बौद्ध धर्म के मतभेद को समाप्त करने का प्रयास किया गया । अभिधम्म पिटक (बौद्ध दर्शन) की रचना की गई । संघ में मतभेद को समाप्त करने के लिए कठोर नियम बनाये गये एवं अभिधम्म पिटक में धर्म सिद्धान्त की दार्शनिक व्याख्याओं का संकलन किया गया ।
* बौद्ध साहित्य में जातकों का स्थान सर्वप्रमुख है । भारत के बाहर चीन, कोरिया, जापान, और तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार व प्रसार हुआ ।
* बौद्ध धर्म ने जाति व्यवस्था, ऊँच-नीच, ब्राह्मण धर्म की सर्वोच्चता एवं वैदिक कर्मकाण्ड का विरोध किया । उन्होंने शिक्षा व्य्वस्था का गुरुज्ञान की पुरानी परम्परा को तोड़कर संधिक व्य्वस्था का सूत्रपात किया ।
* अपने उपदेशों को जनता की भाषा पालि एवं प्राकृत में लोकप्रिय बनाया ।
* इनके द्वारा स्तूप, विहार एवं चैत्यों आदि स्थापत्य कला बनवाये गये ।
* बौद्ध धर्म द्वारा ही मूर्ति पूजा का प्रारम्भ किया गया जिसका प्रभाव हिन्दू धर्म पर भी पड़ा ।
* गौतम बुद्ध के द्वारा बिहार उस समय विश्‍व भर में बुअद्धों का आकर्षण का केन्द्र बना ।
गौतम बुद्ध ने बिहार में (ऐतिहासिक तथ्य, संस्मरण एवं सैन्य मानचित्र के अनुसार) वे कपिलवस्तु से चलकर आरा पहुँचे, फिर सोन नदी पार करके पाली, भगवान गंज, नदौल, इस्लामपुर एवं सालिमपुर होते हुए गया पहुँचे । गया में पीपल वृक्ष के नीचे दिव्य ज्ञान प्राप्ति के बाद जिन मार्गों पर चलकर उन्होंने अपने ज्ञान के प्रकाश से विश्‍व को आलोकित किया ।
इस प्रकार बौद्ध धर्म ने सांस्कृतिक, शैक्षिक, धार्मिक तथा राजनीतिक आदि रूप से भारतीय इतिहास (विशेष बिहार को) एक नई क्रान्ति उत्पन्‍न की । गौतम बुद्ध के शान्ति एवं अहिंसा के उपदेश विश्‍वव्यापी होकर आज भी आलोकित कर रहे हैं और शान्ति, समृद्धि एवं विकास के लिए उस समय बिहार को हर तरह से महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्तम्भ के रूप में स्थापित किया है ।
सिक्ख धर्म


सिक्ख धर्म का प्रचलन बिहार में १५ वीं शताब्दी से शुरू हो गया था । स्वयं सिक्ख धर्म के संस्थापक एवं प्रवर्तक गुरु नानक जी द्वारा गया, राजगीर, पटना, मुंगेर, भागलपुर, कहल गाँव आदि की यात्रा करते हुए राजमहल जाने की चर्चा उनकी जीवनी में की गई है । गुरूजी ने बिहार के इन क्षेत्रों में धर्म प्रचार भी किया और शिष्य बनाये ।
सिक्खों के नवें गुरू श्री तेग बहादुर का बिहार आगमन सत्रहवीं शताब्दी के बाद में हुआ । वे सासाराम और गया से होते हुए पटना आये । पटना में उनके अनेक शिष्यों द्वारा भव्य स्वागत किया गया । गुरू के पटना निवास के दिनों ही असोम में जहाँ औरंगजेब के राजपूत सेनापति को सहायता देनी थी । पटना से प्रस्थान के समय वह अपनी पत्‍नी गुजरी देवी को भाई कृपाल से संरक्षण में छोड़ गये ।
यहीं पटना में सिक्खों के दसवें एवं अन्तिम गुरु गोविन्द सिंह का २६ दिसम्बर, १६६६ को जन्म हुआ । लगभग साढ़े चार वर्ष की आयु में बाल गुरु पटना को छोड़कर पिता के आदेशानुसार पंजाब के आनन्दपुर चले आये । गुरु पद ग्रहण करने के बाद उन्होंने अपने मसनद (धार्मिक प्रतिनिधि) बिहार के क्षेत्र में भेजे । १७०८ ई. में उनका निधन हो गया । पटना में गुरु गोविन्द सिंह से जुड़े हुए अनेक वस्तुओं का संग्रह है । तख्त श्री हरमिन्दर के निकट दक्षिण-पूर्व में गुरु द्वारा मैनी संगत स्थित है ।
गुरु गोविन्द जी बचपन में अपने मित्रों के साथ खेलने आया करते थे । गायघाट में एक समरणीय गुरुद्वारा बनवाया गया । पटना शहर के पूर्वी भाग में गुरु का बाग है । इस प्रकार पटना शहर सिक्खों का महत्वपूर्ण स्थल है ।
इस्लाम धर्म

बिहार में इस्लाम धर्म सम्प्रदाय का प्रचार एवं प्रसार सूफी सन्तों के प्रयास से हुआ है । सभी सूफी सम्प्रदायों का आगमन बिहार में हुआ ।
बिहार में सर्वप्रथम चिश्ती सिलसिले के सूफी सन्त आये । सबसे पहले आने वाले सूफी सन्तों में शाह महमूद बिहारी एवं सैय्यद ताजुउद्दीन प्रमुख थे । बिहार में आने वाले अन्य सूफी सम्प्रदायों में हाजीपुर के सैय्यद इब्राहिम चिश्ती तथा सुहरावर्दी सिलसिले के प्रमुख सूफी जलाल तबरीजी प्रमुख थे ।
लेकिन बिहार आने वाले सिलसिलों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण फिरदौसी सिलसिले था । मख्दुम सर्फूद्दीन मनेरी इस सिलसिले के सर्वाधिक लोकप्रिय सन्त थे । उनके पिता मखदूय याहिया सर्फूद्दीन मनेरी सिलसिले के सूफी सन्त थे । ये एक उदार विचारक और व्यवहार कुशल, सहिष्णुतापूर्ण व्यक्‍ति थे । सन्त दरिया साहेब हिन्दू और मुस्लिम समन्वयवादी थे ।
इस प्रकार विभिन्‍न सूफी सन्तों ने धार्मिक सहिष्णुता, सामाजिक सद्‍भाव, मानव सेवा और शान्तिपूर्ण सह‍अस्तित्व का उपदेश दिया और इस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार किया ।

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II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
ॐ शुक्लांब्रह्मविचारसार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं I वीणापुस्तक धारिणींमभयदां जाड्यान्ध्कारापहाम् II हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मसनेसंस्थितां I वन्देतांपरमेश्वरींभगवतीं बुद्धिप्रदाम शारदाम् II

माछक महत्व


हरि हरि ! जनम कि‌ऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पल‌इ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कब‌इ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खा‌एब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



पग पग पोखैर पान मखान , सरस बोल मुस्की मुस्कान, बिद्या बैभव शांति प्रतिक, ललित नगर दरभंगा थिक l

कर भला तो हो भला अंत भले का भला

समस्त मिथिलांचल वासी स निवेदन अछि जे , कुनू भी छेत्र मै विकाश के जे मुख्य पहलू छै तकर बारे मै बिस्तार स लिखैत" और ओकर निदान सेहो , कोनो नव जानकारी या सुझाब कोनो भी तरहक गम्भीर समस्या रचना ,कविता गीत-नाद हमरा मेल करू हमअहांक सुझाब नामक न्यू पेज मै नामक और फोटो के संग प्रकाशित करब ज्ञान बाटला स बढैत छै और ककरो नया दिशा मिल जायत छै , कहाबत छै दस के लाठी एक के बोझ , तै ककरो बोझ नै बनै देवे .जहा तक पार लागे एक दोसर के मदत करी ,चाहे जाही छेत्र मै हो ........

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